ज्योतिषशास्त्र में शनि को न्याय प्रिय और सूर्य पुत्र कहा गया है। जन्म कुंडली में शनि की स्थिति के कारण ही इंसान के जीवन में उतार—चढाव बने रहते हैं। शनि ग्रह से कई रोचक व महत्वपूर्ण बातें जुडी हैं जिन्हें जानकर जीवन में अनुकूल परिणाम हासिल कर सकते हैं।
शनि का मूल स्वभाव – ज्यादातर लोग शनि को मारक, अशुभ और दुख कारक मानते हैं। मगर देखा जाए तो शनि उतना अशुभ और मारक नही है जितना इसे कहा जाता है। शनि कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं इसलिए शनि शत्रु नहीं होकर एक अच्छे मित्र और मार्गदर्शक समान है। धर्म ग्रंथों में शनि को एकमात्र मोक्ष देने वाला ग्रह माना है।
ज्योतिष में शनि – ज्योतिषशास्त्र में शनि को सूर्य-पुत्र,छायापुत्र व शनिश्चर आदि नाम से संबोधित किया है। शनि को मकर और कुम्भ राशि का स्वामी माना है। ग्रहों में शनि की सूर्य,चन्द्र,मंगल से शत्रुता,बुध,शुक्र से मित्रता तथा गुरु से सम संबंध होते हैं। रत्नों में नीलम शनि का रत्न होता है। शनि ग्रह तुला राशि में उच्च के होते हैं और मेष राशि में नीच के होते हैं। ज्योतिष में शनि की तीसरी, सातवीं, और दसवीं दृष्टि होती है।शनि का रंग काला होता है और यह इंसान के स्नायु तंत्र को प्रभावित करते हैं।
कुंडली में शनि – जीवन में शनि अपना किस प्रकार प्रभाव दे सकते हैं इसे जानने के लिए अपनी जन्म कुंडली में शनि ग्रह की स्थिति अवश्य देख लेनी चाहिए। अगर शनि कुंडली में चौथे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में किसी भी राशि में नीच का होकर स्थित हैं तो जीवन में कई तरह की परेशानी आती रहती हैं और महादशा, अन्तर्दशा में स्थिति बहुत पीडादायक हो जाती है। इस दौरान शनि ग्रह से संबंधित उचित उपाय कर लेने चाहिए जिससे राहत मिलती है।
शनि से प्रभावित व्यक्ति – ज्योतिषशास्त्र अनुसार शनि से प्रभावित लोग मेहनती और संघर्षशील होते हैं और 35 वर्ष बाद इन लोगों का भाग्य उदय होता है।
शनि का अंक – 8 अंक को शनि ग्रह का प्रतिनिधि माना है। 8 अंक वाले जातकों पर शनि का प्रभाव रहता है। जिस तारीख को जन्म हुआ उसकी कुल गणना करने पर 8 आए तो अंकाधिपति शनि देव को माना जाएगा।
शनि देव का बीज मन्त्र – शनि देव के प्रमुख बीज मंत्र ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः और ॐ शनैश्चराय नमः है। इन मंत्रों के विधिवत जाप से शनि के नकारात्मक प्रभाव,पीडा दूर रहती है और अनुकूल परिणाम मिलते हैं।
शनि प्रभाव से जीवन में उतार—चढाव – जन्म कुंडली में शनि ग्रह की अलग—अलग भावों में स्थिति के प्रभाव से जीवन में उतार—चढाव देखने को मिलते हैं।शनि कर्मों के हिसाब से फल देते हैं और अगर कष्ट,परेशानी देते हैं तो इसे सकारात्मक रूप से देखना चाहिए और शनि देव की पूजा अर्चना व क्षमा याचना के बाद कर्मों में सुधार कर बाद में शुभ परिणाम भी प्राप्त किए जा सकते हैं।
शनि देव मंद गति से चलते हैं इसलिए अपना प्रभाव धीरे धीरे दिखाते हैं और शुभ—अशुभ फल भी धीरे—धीरे ही मिलते हैं।
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