पूजा पाठ और धार्मिक कार्यों के दौरान आसन का उपयोग होता है। धार्मिक मान्यता है कि बिना आसन बिछाए पूजा पाठ करने से पूजा का पूरा फल नहीं मिल पाता है। आसन बिछाने के पीछे धार्मिक व वैज्ञानिक कारण भी जुडे हुए हैं।
आसन बिछाने का वैज्ञानिक कारण – वैज्ञानिक कारण है कि आसन भूमि व इंसान के बीच कुचालक की तरह कार्य करता है और सकारात्मक ऊर्जा पृथ्वी में समाहित नहीं होती है।
धार्मिक कारण – ग्रंथों के अनुसार आसन का प्रयोग नहीं करने पर सिद्वि व शुभ फल भी प्राप्त नहीं होते हैं। इस बारे में ब्रह्मांड पुराण में आसनों के नियमों का उल्लेख किया गया है।
पूजा-ध्यान के दौरान इंसान के अंदर एक विशेष प्रकार की शक्ति अर्थात् सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह ऊर्जा भूमि में नहीं जाए और पूजा का पूरा फल मिले इसलिए ही आसन का उपयोग किया जाता है।
बिना आसन के मिलने वाले नकारात्मक परिणाम –- अगर कोई साधक जमीन पर बैठ कर पूजा पाठ करता है तो दुखों की प्राप्ति होती है।
- बांस के आसन पर बैठ कर पूजा ध्यान व मंत्र जाप करने पर निर्धनता आती है।
- पूजा के दौरान पत्थर के आसन का उपयोग करने पर साधक को बीमारियां होती हैं।
- लकडी का आसन उपयोग करने पर साधक के मन को अशांति मिलती है।
आसन बिछाने के दौरान सावधानियां – जब भी पूजा पाठ आरंभ की जाए उससे पहले आसन को मंत्र द्वारा शुद्व व पवित्र कर लेना चाहिए और आसन को शुद्ध जगह पर ही लगाकर बैठना चाहिए।
पैर से आसन को बिल्कुल स्पर्श नहीं करें। आसन को भगवान की प्रतिमा के बराबर भी नहीं बिछाना चाहिए।
धार्मिक मान्यता अनुसार पूजा के दौरान कंबल का आसन और कुश आसन उपयोग करना श्रेष्ठ होता है। विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए लाल रंग के आसन का उपयोग करना चाहिए।
इस तरह पूजा पाठ के दौरान आसन बिछाकर और महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रख कर पूजा का पूरा फल व ईश्वर की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
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