योगेश्वर भगवान कृष्ण जो अपनी योग की शक्ति से अनंत कोटि ब्रह्माण्ड के अखिल नायक बने. ऐसे भगवान श्री कृष्ण जो श्रीहरि विष्णु के एकमात्र पूर्णावतार थे यानि की समस्त सोलह कलाओ से सम्पूर्ण थे. देवाधिदेव श्री कृष्ण के जीवन के अनेक तथ्य हैं जो हमें ज्ञात ही नहीं है. एक कारागृह में जन्म लेकर सम्पूर्ण विश्व का प्रतिनिधि बनने तक के सफ़र तथा पुनः गोलोक गमन समेत कई रहस्य हैं जो कृष्ण से जुड़े हैं लेकिन हमें उनके बारे में पता नहीं है
आइये जानते हैं भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी रहस्यमयी बातें (unknown facts about krishna) –
भगवान के आयुध एवं अस्त्र- शस्त्र –
श्री कृष्ण की खड्ग का नाम नंदक, गदा का नाम कौमुदकी तथा शंख का नाम पांचजन्य था. गुलाबी रंग के इस शंख का उपयोग श्री कृष्ण महाभारत के युद्ध के समय युद्धारम्भ करते समय करते थे।
भगवान कृष्ण का सबसे प्रिय एवं प्रमुख आयुध चक्र था जिसका नाम सुदर्शन था। इस सुदर्शन चक्र के समान दिव्यास्त्र केवल पाशुपतास्त्र एवं प्रस्वपास्त्र थे।
श्रीकृष्ण के रथ का नाम जैत्र था एवं सारथी का नाम दारुक/ बाहुक था तथा रथ के अश्वों के नाम शैव्य, सुग्रीव, मेघपुष्प और बलाहक थे.
ऐसे थे भगवान श्री कृष्ण परलोक गमन के समय तक भी शरीर युवावस्था में था –
भगवान श्री कृष्ण से योगबल से सोलह कलाएं अर्जित की थीं. हर परिस्थिति में एक रस रहने वाले योगेश्वर अर्थात जो बड़े बड़े योगियों के भी ईश्वर हैं ऐसे श्री कृष्ण का शरीर अपने परलोक गमन तक युवा था.
उनका शारीरिक रंग मेघश्यामल था जिनके शरीर से एक अत्यंत मादक गंध निकलती रहती थी।
अत्यंत सौम्य शरीर वाले भगवान श्री कृष्ण की मांसपेशियां युद्ध समय दीर्घ आकार लेकर एक संहारक भीषण योद्धा के भांति कठोर हो जाया करती थी.
कृष्ण ने केवल सोलह वर्ष की आयु में ही कंस के चाणूर और मुष्टिक जैसे मल्लों का वध किर दिया था।
माता विंध्यवासिनी हैं श्री कृष्ण की बहन –
आज जिन माता विंध्यवासिनी की पूजा हम करते हैं वो दरअसल वही योगमाया है जिनको जेल में भगवान श्री कृष्ण के बदले में बदला गया था. उस समय योगमाया यशोदापुत्री का नाम एकांशा था।
महाभारत कथा में नहीं है राधा का वर्णन
भगवान कृष्ण का जिक्र राधा के बिना अधूरा है किन्तु महाभारत आदि कुछ ग्रंथों में राधा का वर्णन नहीं है। उनका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण, गीत गोविंद व जन श्रुतियों में प्रचलित कथाओं में रहा है।
कलियारपट्टू ( केरल में प्रचलित प्राचीन मार्शल आर्ट) के जनक थे कृष्ण (kaliyaripattu and Krishna ) –
मान्यताओं के अनुसार मार्शल आर्ट एवं मल्ल युद्ध में कौशल के जन्म दाता श्री कृष्ण ही थे. उनके चतुरंगिनी नारायणी सेना ऐसे कई महारथियों से सुसज्जित थी. नारायणी सेना बहुत ही विध्वंसक सेना थी जिससे टकराने से देवता भी डरते थे।
श्रीकृष्ण भी थे श्रेष्ठ धनुर्धर –
भगवान श्री कृष्ण अर्जुन एवं कर्ण से भी श्रेष्ठ धनुर्धर थे. मद्र राजकुमारी लक्ष्मणा के स्वयंवर में श्री कृष्ण ने धनुष प्रतियोगिता जीत कर उनका वरण किया था।
भगवान शिव और अर्जुन से भी हुआ था कृष्ण का युद्ध (Krishna and mahadev battle, Krishna and Arjun battle, Krishna and banasur battle) –
बाणासुर भगवान शिव का परम भक्त था और उसे भगवान शिव ने वरदान दे रखा था कि तेरे राज्य की रक्षा मैं स्वयं करूँगा. ऐसे में जब भगवान कृष्ण और बाणासुर युद्ध हुआ तो स्वयं देवाधिपति शिव उसकी ओर से युद्ध करने आए थे.
सुभद्रा की प्रतिज्ञा के कारण श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच भयानक द्वंद्व युद्ध हुआ था,जिसमें देवताओं के हस्तक्षेप के बाद विनाशक शस्त्र सुदर्शन चक्र एवं पाशुपतास्त्र को चलने से रोका गया था.
जैन धर्म और श्री कृष्ण (Krishna in Jainism )–
जैन मत के अनुसार नेमिनाथ जी श्री कृष्ण के चचेरे भाई थे. सनातन शास्त्रों में इन्हें अंगिरस के नाम से जाना जाता है.
श्री कृष्ण की शिक्षा –
भगवान श्री कृष्ण ने अपनी औपचारिक शिक्षा उज्जैन के संदीपनी आश्रम में पूरी की. यहीं गुरूकुल में सुदामा से उनकी मित्रता हुई जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है।
महाभारत के युद्ध से पहले अर्जुन को गीता ज्ञान दिया जिसमें जीवन के सार और अंतिम सत्य, कर्म फल आदि विषयों पर सम्पूर्ण व्याख्या श्री कृष्ण ने अर्जुन के माधयम से सबको प्रदान किए.
हमारी अध्यात्मिक चेतना के सिरमौर श्री कृष्ण हम सबके प्रिय हैं. जीवन के हर आयु काल में कृष्ण आपके साथी बनकर खड़े रहते हैं. हर मां चाहती है उसका पुत्र कृष्ण सा मनमोहन सबका चहेता हो, युवावस्था में एक मित्र के रूप में और उसके बाद जीवन में मार्गदर्शक के रूप में आपकी हर परेशानियों का हल श्री कृष्ण प्रदान करते हैं.
आइये ऐसे योगेश्वर कृष्ण की हम सब हृदय से वंदना करें एवं उनके मार्गदर्शन में चलने का प्रयास करेंगे ऐसा निश्चय करते हैं.