गुड़ी पड़वा यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा जिसे हिन्दू नववर्ष का आरंभ माना जाता है। हिन्दू पांचांग के अनुसार गुड़ी पड़वा नए साल का पहला दिन होता है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन से महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और साल की गणना कर पंचांग की रचना की थी. यही कारण है कि हिंदू पंचांग की शुरुआत भी गुड़ी पड़वा से ही होती है. महाराष्ट्र में इस त्यौहार को पूरे रीति-रिवाज के साथ मनाया जाता है। इस दिन विशेष तौर पर नीम के दातुन,नीम के पत्ते व गुड़ खाने का प्रावधान है।
गुड़ी पड़वा मुहूर्तमार्च 17,2018 को 18:43 से प्रतिपदा आरंभ
मार्च 18,2018 को 18:33 पर प्रतिपदा समाप्त
क्यों मनाया जाता है गुड़ी पड़वागुड़ी पड़वा यदि शाब्दिक रूप से देखा जाये तो गुड़ी कहते हैं ध्वज को यानि पताका को व यहां गुड़ी का अर्थ है विजय पताका तो वहीं पड़वा प्रतिपदा तिथि को कहा जाता है।
किसान रबी की फसल की कटाई के बाद पुनः बुवाई करने की खुशी में इस त्यौहार को मनाते हैं। इस दिन लोग अपने घर के दरवाजों पर आम के पत्ते बांधते हैं।
गुड़ और नीम खाने के पीछे के वैज्ञानिक कारण
- चैत्र मास से मौसम में काफी बदलाव आता है व कई प्रकार की बीमारियां होने का भय रहता है।
- इसलिए इस दिन नीम का रसपान किया जाता है।
- मंदिर में दर्शन करने वाले को भी नीम और शक्कर प्रसाद के रूप में मिलता है।
- नीम कड़वा है लेकिन आरोग्य देह है व आरंभ में पीड़ा देकर बाद में निरोग करने करने वाला चिक्तिकत्सा स्वरूप है।
- इसी प्रकार गुड़ को चीनी का सबसे बेहतर विकल्प माना जाता है।
- यह शरीर की पाचन क्रिया को दुरुस्त करने का काम करता है।
- गुड़ में कार्बोहाइड्रेट व मिनरल जैसे कई ऐसे पोषक तत्व होते हैं, जो मौसम के परिवर्तन पर होने वाले संक्रमन व रोगों से लड़ने में लाभकारी होता है।
- गुड़ी पड़वा एक तरह से वर्ष भर में खुशियां देने वाला पर्व होने के साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी मौसम परिवर्तन पर खुद को स्वस्थ्य व निरोग रखने का एक मूल मंत्र है।