धर्म से जुड़ी आस्था हमें प्रेरणा देती है कि हमें रक्षा सूत्र यानि कलावा बांधना चाहिए। कलाई पर एक धागा के बांधने मात्र से अक्सर यह सोचा जाता है कि सामने वाले कि रक्षा कैसे होगी। इस तरह की तमाम बातें हर किसी के दिमाग में कलावा बंधवाते समय आती है। लेकिन धर्म से जुड़ी जो भी परंपराएं हैं उनका गहन चिंतन करें तो कोई ना कोई वैज्ञानिक कारण जरूर निकल आता है। कलावा बांधने के पीछे भी ऐसा ही कारण है। आईए जानतें हैं क्या है कलावा बांधने के पीछे की वजह, कब से हुई थी इसकी शुरुआत और कैसे यह हमारे सेहत का रक्षा सूत्र है।
धार्मिक मान्यताइसकी शुरुआत सदियों पहले हुई जब भगवान इंद्र जब वृत्तासुर से लड़ने के लिए गए थे तब उनकी पत्नी शची ने इंद्र की भुजा पर यह रक्षासूत्र के रूप में बांधा था। इस युद्ध में भगवान इंद्र की विजय हुई थी।
तभी से यह परंपरा शुरू हुई और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ गया।
कलावा के वैज्ञानिक लाभ
- हमारी सारी नसें सीधे हाथ की कलाई से होकर गुजरती है।
- इन नसों के द्वारा हमारे मन-मस्तिष्क पर नियंत्रण किया जाता है।
- कलाई पर कलावा बांधने से हमारी नसें नियंत्रित होती हैं, मन नियंत्रित रहता है।
- यह तीनों धातुओं (कफ,वात,पित्त) को संतुलित करती है।
- डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक और लकवा जैसे रोगों से बचाने में मददगार है।
- ग्रहों को भी नियंत्रण करने का काम करता है कलावा।
- ऐसे लोग जिनमें आत्मविश्वास की बेहद कमी हो लाल रंग का कलावा बांधना लाभकारी होता है।
- कलावा बंधवाते समय मुठ्ठी बंद रखनी चाहिए ताकि कलाई की नस में खींताव आ सके जिससे जो लाभ नसों को मिलना चाहिए वो निल सके।
“येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।“
तीन धागों का महत्व
- लाल पीला और सफ़ेद रंग का बना हुआ कलावा सर्वोत्तम होता है।
- तीन धागें ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक माने जाते हैं।
- पुरुषों और अविवाहित लड़कियों को दाहिने हाथ में और विवाहित स्त्री को बाएं हाथ पर कलावा बंधवाना चाहिए।
- पुराने कलावे को वृक्ष के नीच रख देना चाहिए।
तो आपने जाना तीन धागों से मिलकर बना कलावा किस प्रकार से अनिष्टों से रक्षा करने के साथ ही चिकित्सा पद्द्ति को भी अपने में समाहित किया हुआ है।
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