शनि देव सूर्य पुत्र है। लोगों में यह आम धारणा है शनि का प्रभाव अशुभ होता है जिससे जीवन में समस्याएं आती है रहती है लेकिन ऐसा सोचना गलत है। शनि देव की पूजा एवं उचित ज्योतिष परामर्श द्वारा इस ग्रह के प्रभाव के शुभ फल पाए जा सकते हैं।
2020 में कब है शनि जयंती
ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि अमावस्या या शनि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इसी दिन वट सावित्री का व्रत भी किया जाता है। हालाँकि दक्षिण भारत में बैसाख मास की अमावस्या को शनि जयंती के रूप में मनाई जाती है। 2020 में कब है शनि जयंती –अमावस्या तिथि प्रारम्भ – मई 21, 2020 को सांय 09:35 बजे से
अमावस्या तिथि समाप्त – मई 22, 2020 को रात्रि 11:08 बजे तक
कौन हैं शनिदेव ? शनि को अशुभ ग्रह क्यों माना जाता है?
शास्त्रों में शनिदेव भगवान सूर्य तथा छाया (संवर्णा) के पुत्र हैं। ज्योतिष के प्रभाव में शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है। फलित ज्योतिष के अनुसार शनि को अशुभ माना जाता है जिनका स्थान ज्योतिष के मानक ग्रहों में 7वां है। शनि एक राशि में तीस महीने तक विचरण करते हैं। शनि देव को मकर और कुंभ राशि का स्वामी कहा गया है जिनकी महादशा 19 वर्ष तक रहती है।शनि नहीं हैं क्रूर देवता
कुंडली हमारे पिछले जन्म में किये कर्मों के संचय का लेखा जोखा दिखाती है। इसके आधार पर आने वाले जीवन में क्या अशुभ और शुभ प्रभाव होगा इसका पता लगाया जा सकता है और उपाय भी किये जा सकते हैं। ज्योतिष में शनिदेव को न्यायप्रिय राजा हैं माना गया है। इसलिए जीवन में किये गए अशुभ कर्मों के फल शनि की दशा से ही प्रभावित होते हैं। यदि आपने पूर्व जन्म में या वर्तमान जीवन में कोई बुरे कार्य नहीं किये हों तो आपको शनि के प्रकोप से डरने की जरुरत नहीं है।शनि ग्रह के प्रभावी होने के पीछे है वैज्ञानिक कारण ?
शनि की चाल का एवं हमारी कुंडली में स्थिति का शक्तिशाली प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। शनि की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी से 95वें गुणा ज्यादा मानी जाती है और ग्रहों की गुरुत्वीय स्थिति से हमारे जीवन पर असर होता है। यह गुरुत्वाकर्षण शक्ति अच्छे और बुरे दोनों तरह के कर्मों के कारण हम पर अच्छा एवं बुरा प्रभाव पड़ता है। इसी के आधार पर हमारे जीवन में शनि की दशा चलती है।शनि जयंती 2020 – कैसे करे शनि देव की पूजा
● प्रात:काल उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
● लकड़ी के एक पाट पर काला वस्त्र बिछाएं और उस पर शनिदेव की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। अगर ये उपलब्ध नहीं हो तो सुपारी भी रख सकते हैं।
● इस तस्वीर के दोनों और शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाकर धूप जलाएं।
● शनिदेवता के इस प्रतीक स्वरूप को पंचगव्य, पंचामृत, इत्र आदि से स्नान करवायें। इसके बाद अबीर, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम व काजल लगाकर नीले या काले फूल अर्पित करें।
● शनि देव की पंचोपचार से पूजन करना चाहिए एवं शनि मंत्र की एक माला का जाप भी करना चाहिये।
● इसके बाद शनि आरती करें एवं क्षमा याचना कर सुख शांति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
शनि को भोग में क्या है प्रिय-
इमरती व तेल में तले खाद्य पदार्थों को भोग के रूप में अपर्ण करें।शनि देव की पूजा में इन बातों का विशेष ध्यान रखें:
● शनि अमावस्या को सूर्योदय से पूर्व उठकर शरीर पर तेल मालिश करने के बाद स्नान करना चाहिये।
● शनि मंदिर के साथ-साथ हनुमान जी की भी आराधना ज़रुर करनी चाहिए एवं सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें।
● पूजा के दिन यात्रा नहीं करनी चाहिए।
● पूजा के समय शनिदेव की प्रतिमा से आँखें नहीं मिलानी चाहिए।
● ग़रीबों, असहायों, बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए एवं ज़रूरतमंद लोगों को तेल से बने खाद्य पदार्थ भेंट करने चाहिए।
इसलिए यह धारणा मन से निकाल देनी चाहिए कि शनि है तो आपके जीवन पर बुरा असर ही पड़ने वाला है। हमारा जीवन हमारे कर्मों से निर्धारित होता है और कुंडली भी उन्हीं कर्मों के प्रभाव को बताती है। योग्य ज्योतिष सलाह एवं कुंडली विश्लेषण द्वारा जीवन में चल रही परेशानियों का हल पाया जा सकता है।