हिन्दू धर्म में नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है। पूरे भारत में हर वर्ष चैत्र और आश्विन नवरात्रि को प्रमुखता व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि में नौ दिन तक देवी मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है। देवी के अलग अलग रूपों की विशेष पूजा अराधना कर मां को प्रसन्न किया जाता है जिससे देवी दुर्गा अपने भक्तों की विभिन्न परेशानियों को दूर कर मनोकामनाएं भी पूरी करती हैं।
चैत्र नवरात्रि 2019
चैत्र नवरात्रि प्रारंभ तिथि | 6 अप्रैल 2019,शनिवार |
प्रतिपदा तिथि आरंभ | 5 अप्रैल 2019 शुक्रवार 14:20 |
प्रतिपदा तिथि समाप्त | 6 अप्रैल 2019 शनिवार 15:23 |
चैत्र नवरात्रि समापन | 14 अप्रैल 2019 रविवार |
चैत्र नवरात्रि को वासन्ती नवरात्रि भी कहा गया है और इसका शुभारंभ चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा से होता है। चैत्र नवरात्रि में देवी मां की पूजा व व्रत से भक्त के जीवन में आस्था व सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है जिससे रोग,संकट, दुखों से सामना करने की शक्ति मिलती है।
चैत्र नवरात्रि में विधिपूर्वक नौ दिनों तक देवी की पूजा कर व्रत भी किए जाते हैं। पूजा को विधि विधान पूर्वक ही किया जाना श्रेष्ठ माना गया है।
इस प्रकार पूजा से देवी मां प्रसन्न होकर करेंगी मनोकामनाएं पूरी — नवरात्र के शुभारंभ पर पहले दिन शुभ मुहूर्त में कलश घट की स्थापना की जाती है। धार्मिक मान्यता अनुसार कलश भगवान गणेश का रूप होता है। हमेशा गणेश जी की सर्वप्रथम पूजा की जाती है इसलिए पहले घट स्थापना की जाती है।
- इस दौरान विधिपूर्वक शुद्वता व मन में संकल्प के साथ मां दुर्गा की तस्वीर रख कर पूजा सामग्री भी रखी जाती है और देशी घी से अखंड दीपक प्रज्जवलित करना चाहिए।
- दीपक जलाने से घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और समृद्धि व शांति का वातावरण बनता है।
- इसके बाद मां को घर में बनाया हुआ प्रसाद चढाया जाता है और प्रतिमा के सामने बैठकर ध्यान व दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है।
- नवरात्रि के समापन पर आखिरी दिन कन्याओं को आदरपूर्वक घर बुलाकर उनका तिलक कर व आरती उतार कर पूजन किया जाता है और उपहार में फल,कपडे व पैसे आदि सामग्री देकर विदा करते हुए आशीर्वाद लिया जाता है।
नवरात्रि के दौरान ध्यान रखें ये बातें — नवरात्रि के दौरान विशेष सावधानियां भी बरतनी चाहिए अन्यथा लापरवाही,अनदेखी से मां की नाराजगी झेलनी पड सकती है।
- नौ दिनों तक सात्विकता बनाई रखनी चाहिए और खान—पान में विशेष सावधानी होनी चाहिए और सात्विक भोजन जैसे आलू, कुट्टू का आटा, दही, फल,ज्यूस आदि का सेवन किया जा सकता है।
- इस दौरान नौ दिनों तक मांस—मदिरा भूलकर ग्रहण नहीं करने चाहिए और शारीरिक संबंधों से भी दूरी बनाई रखनी चाहिए।