शीतला अष्टमी हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस दिन देवी शीतला माता का विधिवत व्रत व पूजन होता है। होली के कुछ दिन बाद ही शीतलाष्टमी मनाई जाती है।देवी शीतला माता की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होती है।शीतलाष्टमी का त्यौहार बसौडा के नाम से भी जाना जाता है।
पूजा मुहूर्त 2019
वार व तिथि | 28 मार्च 2019, गुरुवार |
शीतला अष्टमी पूजा का मुहूर्त | 06:20 से 18:32 बजे |
मुहूर्त की अवधि | 12 घंटे 12 मिनट |
अष्टमी तिथि आरंभ | 27 मार्च 2019, 20:55 बजे |
अष्टमी तिथि समाप्त | 28 मार्च 2019, 22:34 बजे |
धर्म ग्रंथों में शीतला माता के बारे में वर्णन – स्कंद पुराण में शीतला देवी माता के बारे में विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। अन्य कई धर्म ग्रंथों में भी शीतला देवी के बारे में वर्णन किया गया है। ग्रंथों में वर्णन के अनुसार शीतला माता का वाहन गर्दभ है और शीतला माता के हाथों में कलश,सूप,झाडू व नीम के पत्ते धारण किए हुए है जिनका अलग प्रतीकात्मक महत्व भी है।
शीतलाष्टमी व्रत व पूजा का महत्व – हिन्दू धर्म में शीतलाष्टमी के दिन व्रत व पूजा करने का बहुत महत्व बताते हुए इस बारे में वर्णन किया गया है। धार्मिक मान्यता अनुसार इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता और शीतलाष्टमी के अगले दिन ही चूल्हा जलाकर खाना बनाया जाता है।शीतला माता की पूजा से घर में सुख शांति आती है और बीमारियां,नेगेटिव एनर्जी दूर होती है।
स्वच्छता बनाए रखने की मिलती है प्रेरणा – शीतलाष्टमी के समय ऋतु परिवर्तन का दौर होता है इसलिए इस दौरान सेहत स्वस्थ बनाए रखने के लिए साफ सफाई का पूरा ध्यान रखना आवश्यक है। देवी शीतला माता की पूजा जीवन में स्वच्छता व पर्यावरण को सुरक्षित बनाए रखने का संदेश भी देती है।
बसौड़ा का पूजा में महत्व – शीतलाष्टमी पर्व के दिन देवी शीतला माता को भोग लगाने के लिए एक दिन पहले ही घरों में बासी खाने का भोग ‘बसौड़ा’ को बना लिया जाता है। अगले दिन अष्टमी को यह प्रसाद के रूप में देवी को अर्पित किया जाता है।
इस अवसर पर देवी माता का व्रत व पूजन किया जाता है और माता की कथा सुनी और सुनाई जाती है। पूजा के पश्चात मां के प्रसाद बसौडा को परिवार के सदस्यों के बीच बांट दिया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से कुल में ज्वर, चेचक, नेत्र विकार जैसे रोग हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं।धार्मिक ग्रंथों के अनुसार शीतला माता का मंदिर वट वृक्ष के समीप ही होता है इसलिए देवी के पूजन के बाद वट का पूजन किया जाता है और वट वृक्ष के पूजन किए बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।