महाभारत का युद्ध इतिहास का सबसे भीषण युद्ध माना जाता है। इसमें आर्यावर्त के उस समय के लगभग सभी जनपदों ने हिस्सा लिया था। त्रेता युग में रामावतार हुआ जिसमें श्री राम के सेवक के रूप में हनुमान जी जो भगवान शंकर के अंशावतार माने जाते हैं, ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हनुमान जी को अमरता का वरदान है जिसके अनुसार वो इस सृष्टि के अंत तक इसी धरती पर विराजमान रहेंगे। त्रेता युग के के बाद हनुमान जी का वर्णन कम मिलता है लेकिन शास्त्रानुसार हनुमान जी गंधमादन पर्वत पर विराजमान हैं और वहीं तपस्या रत रहते हैं।
तो हनुमान जी महाभारत के समय कहाँ थे ?
लगातार 18 दिनों तक चले इस युद्ध में अनगिनत शूरवीर वीरगति को प्राप्त हो गए। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत महाकाव्य जिसे ‘जय संहिता’ नाम से भी जाता था, में इस पूरे घटनाक्रम में हनुमान जी का भी कुछ घटनाओं में वर्णन किया गया है। भीम की हनुमान जी से भेंट, अर्जुन का घमंड तोड़ना और महाभारत के युद्ध के प्रसंगों से ये पता चलता है कि हनुमान जी महाभारत काल में भी उपस्थित थे।आइये इन घटनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं-
महाभारत में हनुमान जी और भीम का मिलन:
भीम भी स्वयं वायुदेव के पुत्र हैं और हनुमान जी भी वायुपुत्र कहलाते हैं इस कारण दोनों भाई माने जाते हैं। महाबली भीम को अपने बल पर पर अत्यधिक घमंड हो गया था। भगवान कृष्ण ने उनके इस घमंड को तोड़ने के लिए हनुमान जी को आदेश दिया। एक बार की बात है भीम द्रौपदी के लिए कमल तोड़ने गंधमादन पर्वत के सरोवर पहुँच गए। वहाँ रास्ते में हनुमान जी बुजुर्ग वानर के रूप में उनका रास्ता रोककर लेट गए। भीम ने जब देखा कि एक बूढ़ा वानर वहां लेटा हुआ है तो उनसे रास्ता देने के लिए कहा। इस पर हनुमान जी ने कहा की वो बुजुर्ग हैं इसलिए उठने में असमर्थ हैं वो खुद ही पूँछ उठाकर एक ओर कर देवें। भीम ने खूब ताकत लगा ली किंतु हनुमान जी की पूँछ हिली भी नहीं। अंत में भीम ने हारकर क्षमा मांगी और वानर से अपना परिचय देने को कहा। तब हनुमान जी ने भीम को असली रूप में दर्शन दिए और विजय होने का आशीर्वाद भी दिया।महाभारत युद्ध के दौरान हनुमान जी अर्जुन के रथ पर विराजमान थे :
महाभारत का युद्ध दिव्यास्त्रो और ऐसे अनेकों अमोघ अस्त्रों- शस्त्रों लड़ा गया युद्ध था। कौरवों के पक्ष में एक से एक महारथी भीष्म, द्रोण, कर्ण , कृपाचार्य आदि योद्धा थे। ऐसे में पांडवों की ओर से इनके मुकाबले का एक ही योद्धा था अर्जुन। इसलिए जाहिर सी बात है युद्ध के दौरान अर्जुन उनका लक्ष्य रहता था और उस पर दिव्यास्त्रों की बौछार भी अधिक होती थी। कृष्ण इस बात को जानते थे इसलिए उन्होंने हनुमान जी को अर्जुन की परीक्षा लेने और अर्जुन के रथ की पताका में विराजमान होने को कहा। हनुमान जी के प्रभाव से ही अर्जुन का रथ सुरक्षित रहा और अस्त्रों शस्त्रों का इस पर प्रभाव नहीं हुआ।इस तरह ली हनुमान जी ने अर्जुन की परीक्षा:
एक बार अर्जुन युद्ध समय के दौरान श्रीकृष्ण के बिना वन में विहार करने गए और घूमते-घूमते रामेश्वरम् पहुंचे जहां श्रीराम जी द्वारा बनाए गए सेतु को देखा। सेतु को देखकर अर्जुन ने आश्चर्य से अर्जुन के घमंड पूर्वक सोचा कि सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होते हुए भी भगवान राम ने वानरों से सेतु क्यों बनवाया। मैं होता तो बाणों से ही सेतु बना देता।अर्जुन की यह बात सुनकर हनुमान जी प्रकट हुए होकर बोले की बाणों का सेतु बानरों का भार नहीं सहन कर सकता था। यह सुन अर्जुन ने कहा कि यदि मेरे बाणों से बना सेतु आपका भार नहीं संभाल पाया तो मैं स्वयं को अग्नि में आहूत कर दूंगा। हनुमान जी ने अर्जुन की बात को स्वीकार करली और अर्जुन के बाणों से बने हुए सेतु से पर हनुमान मान जी के दो चरण धरते ही सेतु टूट गया।
अपनी हार को स्वीकार करते हुए अर्जुन अग्नि समाधि के लिए चले गए। तभी श्रीकृष्ण प्रकट हुए और अर्जुन से कहा कि वो स्वयं हनुमान की सहायता से तुम्हारी परीक्षा ले रहे थे। इस बार श्रीराम का नाम लेकर सेतु बनाओ। अर्जुन ने ऐसा ही किया इस बार हनुमान जी के चढ़ने से सेतु नहीं टूटा। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने हनुमान जी को अर्जुन के रथ की ध्वजा में विराजित होने के लिए कहा।
हनुमान जी के कारण ही सुरक्षित रह पाया अर्जुन का रथ, युद्ध के बाद जल कर राख हो गया था।
अपने वचन का पालन करते हुए कुरूक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के रथ की ध्वजा में हनुमान जी विराजमान हुए। इसके बाद श्रीकृष्ण ने सबसे पहले अर्जुन को रथ से उतारा उसके बाद स्वयं उतरे और तत्पश्चात हनुमान जी को ध्वजा से जाने की आज्ञा दी। हनुमान जी के नीचे उतरते ही पूरा रथ जल कर भस्म हो गया। अर्जुन का रथ तो कब का ही दिव्य अस्त्रों से जलकर राख हो चुका था लेकिन श्री कृष्ण और हनुमान जी की उपस्थिति के कारण बचा हुआ था।हनुमान जी आज भी इस सृष्टि पर विद्यमान है इसलिए उन्हें कलियुग का प्रत्यक्ष देवता भी कहा जाता है। ज्योतिष आदि में ग्रह दोषों के निवारण के लिए हनुमान जी से जुड़े कई सारे उपाय किये जाते हैं। हनुमान जी को अगर इष्ट मानकर आराधना की जाए तो किसी प्रकार के ग्रह दोषों का भय नहीं रहता। इसलिए इन्हें संकट मोचक भी कहा जाता है।