ज्योतिष शास्त्र नौ ग्रहों, 12 राशियों और 27 नक्षत्रों पर आधारित है। किसी भी इंसान के जन्म के समय कुण्डली में ग्रहों की स्थिति पूरे जीवन चक्र को प्रभावित करती है।अगर कुंडली में शुभ योग होते हैं तो जिंदगी खुशहाल रहती है और अशुभ योग हो तो दुखों से समय व्यतीत करना पड जाता है। जानिये,कुंडली में प्रमुख शुभ व अशुभ योगों के बारे में-
कुंडली में योग का महत्व – ग्रह, नक्षत्र आदि के संयोग से शुभ या अशुभ योगों का निर्माण होता है। जातक की जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति से भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है। कुंडली में ग्रह विभिन्न योग का निर्माण करते हैं इनमें कुछ शुभ होते हैं तो कुछ अशुभ होते हैं जिससे जीवन में सुख—दुख का उतार चढाव बना रहता है।
इस तरह बनते हैं योग – कुंडली में जब दो या दो से अधिक ग्रह अगर किसी राशि में युति कर मिलते हैं या कोई दृष्टि संबंध बनाते हैं तो अलग—अलग योग का निर्माण होता है।
गजकेसरी योग – कुंडली में गजकेसरी योग को बेहद शुभ योग माना है। जिस जातक की जन्म कुंडली में यह योग बनता है वह भाग्यशाली होता है और कभी भी अभाव में जीवन व्यतीत नहीं करता है।कुंडली में चंद्रमा व बृहस्पति की शुभ दृष्टि या युति से इस योग का निर्माण होता है।
बुधादित्य योग – किसी जातक की कुंडली में अगर सूर्य व बुध किसी भाव में स्थित हो तो ऐसी कुंडली में बुध आदित्य योग का निर्माण होता है। इस योग के शुभ प्रभाव से जातक को समाज,कार्यक्षेत्र में मान—सम्मान, प्रतिष्ठा सहित कई शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।
कालसर्प योग – ज्योतिष में कालसर्प योग को अशुभ योग माना है। अगर किसी जातक की जन्म कुंडली में राहु व केतु ग्रह के बीच सभी ग्रह आ जाएं तो इसे ज्योतिष की भाषा में कालसर्प दोष कहा जाता है। कुंडली में इस दोष की वजह से शुभ ग्रहों का प्रभाव खत्म हो जाता है और दु:ख,परेशानियों का आना लगा रहता है जिससे तनाव व बुद्वि भी भ्रमित ही रहती है।
गुरू चांडाल योग – इस योग को भी अशुभ परिणाम देने वाला योग माना है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुंडली में जब राहु व गुरू कुंडली में साथ हो या दोनों किसी भाव में बैठ कर एक दूसरे को देखते हो तो गुरू चांडाल योग बनता है। इस योग के प्रभाव से जातक हिंसा,तनाव का शिकार हो जाता है और अपराध की तरफ अग्रसर रहता है।
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