इंसान हमेशा से रत्नों के प्रति आकर्षित होता रहा है। रत्नों के प्रभाव से इंसान के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव आते हैं इसी उम्मीद के साथ रत्न धारण किए जाते हैं। लेकिन रत्न धारण करने के भी नियम होते हैं जिनका पहनने के दौरान ध्यान रखा जाना चाहिए।
हर रत्न किसी ना किसी ग्रह से संबंधित होता है और उस रत्न को धारण किए जाने पर उस ग्रह का प्रभाव इंसान के जीवन में मिलने लगता है। रत्न संबंधित ग्रह की ऊर्जा को सोख कर जातक के शरीर में स्थानांतरित कर देता है।अगर सही रत्न का चुनाव कर उसे धारण किया जाता है तो सकारात्मक परिणाम मिलने लगते हैं और गलत रत्न के चुनाव पर विपरीत परिणाम भुगतने पड जाते हैं।
कुंडली का अध्ययन आवश्यक – अगर कोई रत्न धारण करना हो तो उससे पहले कुंडली का सही विश्लेषण किसी अनुभवी ज्योतिषी से करवा लेना चाहिए तभी रत्न का पूरा सकारात्मक परिणाम मिल सकता है अन्यथा बिना कुंडली दिखाए व जल्दीबाजी में रत्न धारण कर लेने से कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड सकता है।
रत्न की गुणवत्ता का महत्व – रत्न को धारण करने से पहले उसकी शु2द्वता की जांच करना भी जरूरी है और भूलकर भी खंडित,अशुद्व रत्न धारण नहीं करना चाहिए वरना लाभ की जगह नुकसान उठाना पड सकता है।
हर रत्न को एक विशेष अंगूली में धारण किए जाने का नियम होता है। कितने रत्ती वजन का रत्न पहना जाए यह जानना भी आवश्यक होता है। रत्न को संबंधित ग्रह के दिन ही शुभ मुहूर्त में धारण करना चाहिए तभी रत्न का विशेष सकारात्मक परिणाम मिल सकता है।
जन्म कुंडली के विश्लेषण करवाने के बाद रत्न धारण करने पर संबंधित शुभ ग्रहों की अतिरिक्त उर्जा उस रत्न के जरिये जातक के शरीर में पहुंचकर अपना सकारात्मक प्रभाव दिखाती है जिसका असर इंसान की सोच व व्यवहार पर पडता है।
कुंडली में अशुभ ग्रहों के रत्न न पहनें – कोई भी रत्न धारण करने से पहले इस बात का भी विशेष ध्यान रखा जाए कि कुंडली में अगर कोई ग्रह अशुभ स्थिति में है तो उसका रत्न भूलकर भी नहीं पहने और अशुभ ग्रह की वजह से अगर कोई मारक योग या अशुभ योग बनता है तो उस रत्न को बिल्कुल नहीं पहनना चाहिए।